ब्लॉग: रात 9 बजे के बाद मर्द बाहर न निकलें तो लड़कियां क्या करेंगी?

रात 9 बजे मर्दों के बाहर निकलने पर बैन लग जाए तो लड़कियां क्या करेंगी? लड़कियां सोचेंगी नहीं कि उन्हें क्या करना है.
वो उन सारी जगहों पर निकलेंगी, जहां से गुज़रते हुए उनकी आंखों ने सबसे ज़्यादा सड़कें देखी थीं. वो निगाह उठातीं तो 'देख...देख देख रही है' कह संभावनाएं तलाश ली जातीं. मना करने पर लड़कियां खुद को बदचलन कहलवाकर घर लौटतीं.
लौटते ही वो जो पहला वाक्य सुनतीं वो 'वक़्त से घर आने' की कोई सलाह होती. वक़्त जो कभी तय रहा नहीं, हमेशा चलता रहा. लड़कियों के लिए वो वक़्त हमेशा तय रहा, रुका रहा.
रात नौ बजे पहुंचना देर कहलाया. इसी के आस-पास का कोई वक़्त था, जब दिल्ली में फ़िल्म देखकर लौट रही लड़की का गैंगरेप कर एहसास कराया कि सूरज डूबने के बाद घर से निकलीं तो देर कहलाएगी.
मगर देर सूरज डूबने के बाद ही नहीं कहलाई. स्कूल से लौटती, अनाथालयों में पल रही बच्चियों के लिए 24 घंटे या दिन का उजाला भी देर कहलाई. कोई भी वक़्त ऐसा नहीं रहा, जो उनके लिए देर से निकलना, लौटना न कहलाया हो.
उन अधूरे छूटे सीरियल्स को देखते हुए जो आठ बजकर 59 मिनट तक औरतें देखती रहीं. इसलिए नहीं कि उन्हें वो सीरियल पसंद है. बल्कि इसलिए कि वो उन छोटे पर्दे की कहानियों से अपनी ज़िंदगी के हल निकालना चाहती हैं.
नायिका को दुख पहुंचाने वाले किरदार को मारे एक चाटे के तीन रिपीट टेलिकास्ट को देख वो खुश होती हैं. असल ज़िंदगी में चाटे मारने की हिम्मत वो शायद कम ही कर पाईं. क्योंकि जिस घर में पैदा हुईं, उसी घर ने विदा करते हुए कहा था- अब वो ही तेरा घर है, तू पराया धन है.
खुद को पराया धन समझ अपनों का धन परायों को सौंपना ही नियम लगा. नियमों को तोड़ने की कोशिशें खुद तो तोड़ने जैसी होती हैं. हम सब टूटने से डरते हैं. ऊपर से घर बचाने और बनाने की नैतिक ज़िम्मेदारी हमेशा से औरतों पर आई.
रात 9 के बाद मर्द नहीं निकले तो वो औरतें निकल आएंगी, जो बलात्कारी, छेड़छाड़ करने वाले बेटों को पुचकारते हुए कहती हैं- लड़की ने ही छोटे कपड़े पहने थे, क्या बताऊं आपको.
इन औरतों के भीतर जो 'मर्द' छिपा है, उसे कैसे पहचानेंगे? वो मांएं जो दुनिया की सबसे प्यारी मांएं हैं. मगर वो बेटों और बेटियों में अब भी फर्क जानती हैं.
बेटी पराया धन, बेटा अपना धन. सिर पर लाठी मारेगा चिता जलते हुए, कब्र पर मिट्टी डालेगा. ये मांएं इस बात से अंजान कि बेटे ने पहली लाठी उसी रोज़ मार दी थी, जब किसी लड़की ने उनके बेटे से झुंझलाकर सालों से फ़िल्मों और असल ज़िंदगी में कही जा रही बात को कहा था- तेरे घर में मां, बहन नहीं है.
इन बेटों ने उस लाइन को हँसकर टाल दिया था. मगर वो सवाल इन मांओं के माथे पर हमेशा चिपका रहेगा.
तुम्हारे बेटे से 'हल्की सी छिड़ी' उस लड़की का सवाल तुमसे था. एक औरत से, जिसके भीतर कोई मर्द छिपा बैठा है? जवाब ये मांएं जानती होंगी.
मर्दों के निकलने पर बैन लगाकर शायद सब कुछ हासिल न हो. वो लड़कियां जो अपने प्रेमियों के साथ दिन के उजाले में हाथ थामकर नहीं चल पाती हैं. क्योंकि डर है कि संस्कृति का चोला पहने कोई एंटी रोमियो स्क्वॉड आ जाएगा. जिस प्रेमी के गाल पर लड़कियों ने कुछ देर पहले कुछ बोसे चिपकाए थे, उन गालों पर संस्कृति अपने ठेकेदारों से चांटे जड़वा रही हैं.
गालों की लाली आंखों में खून बनकर उतर रही है. रात 9 बजे शायद ये लड़कियां अपने प्रेमियों से मिलना चाहें, जो असल में मर्द हैं. मर्दों को बैन करने से ये लड़कियां अपने प्रेमियों से उस वक्त भी नहीं मिल पाएंगी, जो उनकी आज़ादी के लिए चुना गया है.
या वो लड़कियां जो अपने पतियों, पिताओं, भाइयों या सिर्फ़ दोस्तों के साथ किसी शहर की कोई शाम देखना चाहती हैं. नौ बजे मर्द नहीं निकलें तो लड़कियों की ये इच्छा भी शायद दबी रह जाए. क्योंकि दिन के उजाले या बैन हुए वक़्त से पहले बाइक पर भाई, पिता, दोस्त के पीछे या आगे बैठी लड़की हमेशा 'सेटिंग' या 'संभावना' ही कहलाई.
ये आंखें इतनी समझदार नहीं हुईं कि कह सकें 'सिर्फ जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है.'
रात नौ बजे मर्दों का बाहर निकलना बैन हुआ तो सड़क पर सिर्फ़ औरतें ही औरतें होंगी.
घरों में सिर्फ मर्द ही मर्द. क्या बाहर होना सुरक्षित होना है? तो फिर वो सारे अखबार अलग-अलग हैडिंग में क्यों कहते हैं- अपने ही मामा, चाचा, पिता, भाई ने किया बच्ची के साथ रेप.
मर्द अंदर कैद रहे और सिर्फ़ औरतें बाहर. तो सब वैसा ही रह जाएगा, जैसा सालों से चला आ रहा है.
या फिर कि ये हो कि रात 9, 10 या किसी भी वक्त सड़क पर आधी औरतें हों और आधे पुरुष. एक-दूसरे के मन को समझते हुए, अपने-अपने मन की चलाते हुए. एक दूजे को ये यकीन दिलाते हुए कि तुम कभी भी आओ घर या बाहर. कोई वक़्त ऐसा नहीं है जो तुम्हारे घर देर से आने का ऐलान करे.
जिस वक्त में मर्दों को बैन किए जाने की बात हो, उसी वक्त में उनसे कहें कि आओ देखो तुम्हारे बैन होने पर हम ये कर रहे हैं. तुम देखो और हमें वो भरोसा दिलाओ कि तुम्हारे रात 9 के बाद बाहर होने से हमारे ये करने पर कोई असर नहीं होगा.
ये यकीन सिर्फ मर्द नहीं दिला सकते. वो औरतें, जिन्होंने अपने भीतर पितृसत्तात्मक जैसे कठिन और ज़िंदगी मुश्किल बनाने वाले शब्द को बैठा लिया है. यही औरतें इस यकीन को सबसे ज़्यादा समझ सकती हैं.

Comments

Popular posts from this blog

30周年祭:博帕尔毒气泄漏遗毒犹存

评论通过管理员审核后翻译成中文或英文

الذكريات الزائفة "تعزز انتشار" الأخبار الكاذبة